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1 Dec 2025, Mon

फिल्म हक की रिलीज पर रोक की मांग:शाहबानो की बेटी ने मेकर्स को भेजा लीगल नोटिस, आरोप- बिना अनुमति बनाई गई फिल्म

यामी गौतम और इमरान हाशमी स्टारर फिल्म हक विवादों में घिरती नजर आ रही है। ये फिल्म शाहबानो केस पर बनी है, जिन्होंने 1970 में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की मांग करते हुए राष्ट्रीय बहस छेड़ दी थी। अब शाह बानो की बेटी ने फिल्म की रिलीज रोके जाने की मांग करते हुए इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की है और साथ ही फिल्म के मेकर्स को लीगल नोटिस भेजा है। इस मामले की सुनवाई जल्द होगी। शाहबानो की बेटी सिद्दिका बेगम खान के वकील तौसिफ वारसी ने याचिका में कहा कि फिल्म से मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी और साथ ही कहा गया है कि फिल्म में शरिया कानून की नकारात्मक छवि पेश की गई है। याचिका में ये भी कहा गया है कि मेकर्स ने शाहबानो पर फिल्म बनाने से पहले उनकी कानूनी वारिस से किसी तरह की इजाजत नहीं ली। याचिका दायर होने के बाद फिल्म के डायरेक्टर सुपर्ण एस.वर्मा, प्रोडक्शन पार्टनर, प्रमोटर्स और फिल्म को सर्टिफिकेट देने वाली एथॉरिटी को लीगल नोटिस जारी किया गया है। शाह बानो की बेटी की याचिका में ये भी कहा गया है कि फिल्म हक स्वर्गीय शाह बानो बेगम की निजी और व्यक्तिगत जीवन को दर्शाती है, जिसमें उनके परिवार से जुड़े कई संवेदनशील घटनाक्रम, पर्सनल एक्सपीरियंस और सोशल परिस्थितियां शामिल हैं। वकील ने कहा कि उनकी मुवक्किल सिद्दिका के पास उनकी मां शाह बानो के जिंदगी के मोरल और लीगल अधिकार सुरक्षित हैं। लेकिन मेकर्स ने फिल्म बनाने से पहले उनकी अनुमति नहीं ली है। बता दें कि ये फिल्म 7 नवंबर को रिलीज होने के लिए शेड्यूल है। फिल्म में यामी गौतम ने शाह बानो का किरदार निभाया है, जबकि इमरान हाशमी ने उनके पति मोहम्मद अहमद खान के रोल में हैं। क्या है शाह बानो केस? शाहबानो बेगम, मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला थीं। उनकी शादी मोहम्मद अहमद खान नामक वकील से हुई थी। शाह बानो को उनके पति ने तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था। तलाक के बाद शाहबानो ने मैंटेनेंस के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया। जबकि मुस्लिम शरियत कानून के मुताबिक महिला को सिर्फ इद्दत (तलाक या पति की मौत के बाद मनाया जाने वाला शोक) तक ही मैटेनेंस दिया जाता है। कोर्ट के फैसले का मुस्लिम संगठनों द्वारा जमकर विरोध किया गया था। कहा गया कि कोर्ट का फैसला इस्लाम के शरिया कानून के खिलाफ है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई, जिसके बाद भारी राजनीतिक दबाव के चलते, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार ने 1986 में “मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम” पारित किया।इस कानून में कहा गया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भरण-पोषण केवल इद्दत की अवधि (लगभग 3 महीने) तक ही मिलेगा। हालांकि समय के साथ मुस्लिम महिलाओं को भी मैंटेनेंस मांगने का अधिकार दिया जाने लगा। इस मामले में अब भी बहस जारी है।

By b.patel

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